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रक्षाबंधन कब है 11या 12 अगस्त 2022को

         इस बार रक्षाबंधन को लेकर लोगों की द्विविधा बनी हुई है कि रक्षाबंधन 11 अगस्त को मनाए या 12 अगस्त 2022  को             ,इस विषय में पंचांग के अनुसार 11 अगस्त को पूर्णमासी 10:00 बजे के बाद आई है अतः दिन में 10:00 बजे के बाद रक्षाबधन मनाया जा सकता है ,         और यही पूर्णमासी 12 अगस्त को सुबह 7:00 बजे तक है , यद्यपि एकमत ऐसा भी है कि जिस दिन उदया तिथि हो उस दिन की तिथि मानना ठीक है,          इस हिसाब से भी 12 अगस्त को पूर्णमासी उदया तिथि के अंतर्गत आती है अतः सुबह 7:00 बजे तक मनाया जा सकता है। यहां पर हम एक निवेदन करना चाहेंगे कि इस महत्वपूर्ण पर्व पर  हम भ्रमित ना हो,      11 तारीख के 10:00 बजे के बाद से 12 तारीख के सुबह 7:00 बजे तक जिसको जब सुविधा पड़े प्रेम पूर्वक त्योहार को मनाना चाहिए।          किसी भी तरह का भ्रम त्योहार का मजा किरकिरा कर देता है ,जैसे कोई भोजन करने बैठा हो और उससे कह दिया जाए कि हमें ऐसा लगता है कि, सब्जी...

                                       श्री राधाकृष्ण जी की करुणा  

            | |   भगवान राधा कृष्ण ने स्वयं का बिस्तर लगाने की प्रेरणा दी | |

यह बड़ी आश्चर्यजनक और सत्य घटना हम आपसे शेयर कर रहे हैं, लगभग 5 वर्ष पहले हम श्रीमद् भागवत कथा सप्ताह करके लौटे, बहुत थके हुए थे आकर के सीधे लेट गए, और छोटे बेटे से कहा कि भगवान जी को उनके सिंहासन में बिठा देना
। भगवान श्री राधा कृष्ण को हम अपनी हर कथा में ले जाते हैं, और यात्रा में उन्हें छोटी सी टोकरी में लेटा के ले जाते ., सो छोटे बेटे ने भगवान जी को टोकरी में से निकालकर सिंहासन में बिठाने का प्रयास किया , आपने देखा होगा भगवान जी की मूर्ति जो लगभग नों या दस इंच की होती है, उसके बिठाने के लिए एक चौकोर पीतल की चौकी होती है, जिसमें उनको पधराया जाता है ,
बालक परेशान हो गया जिन चौकियों में श्री राधा कृष्ण जी रोज विराजमान होते थे आज उन्हीं चौकियों में भगवान नहीं बैठ रहे थे , बच्चे ने परेशान होकर के हमें बुलाया और कहा कि भगवान जी चौकी में नहीं फिट हो रहे हैं हमने भी बहुत कोशिश की ना तो चौकी टूटी थी , और ना ही भगवान की साइज बड़ी हुई थी, फिर ऐसा क्या कारण था कि भगवान उसमें नहीं बैठ रहे थे ....
अचानक उन्हीं ने प्रेरणा दी कि " जब तुम कथा से आके थक सकते हो ,तो क्या मुझे थकावट नहीं आएगी ?

जहां से ऐसा विचार आया तुरंत ही हमने अपने कान पकड़े ,और तुरंत उनके लिए छोटा सा पलंग बिछाया ,जो हमारे बब्बा जी ने बनवाया था , पलंग तो बहुत पहले से था लेकिन यह भावना आज पहली बार जगी थी ,
सो हमने तुरंत बढ़िया कोमल कोमल बिस्तर लगाया , और भगवान राधा कृष्ण जी को उस पर सुला दिया ,
चद्दर उड़ा दिया , पंखा चला दिया ....
और फिर आकर सो गए .

सुबह जब उनकी पूजा हुई , और फिर से उनको विठाला गया तो जैसे रोज आराम से बैठ जाते थे ,
आज उसी तरह आराम से बैठ गए।

सज्जनों इस घटना ने हमारे अंदर प्रचंड भक्ति भाव प्रकट कर दिया , बस फिर क्या था उस दिन के बाद यह नियम बन गया की रात्रि में संध्या आरती के बाद , भगवान का शयन कराना चाहिए।

यहां एक बात हम जरूर कहना चाहते हैं ,
भगवान सदैव हमारे थे ! हमारे हैं ! और हमारे रहेंगे !

लेकिन हम लोग थोड़ा सा वैभव या माया के चक्कर में भगवान को भूल जाते हैं , और फिर उन संसार के लोगों से अपना पक्का नाता मानते हैं , जो सिर्फ स्वार्थ तक सीमित है ,और जब इन पर बहुत ज्यादा विश्वास होता है , किसी कारण से इनका स्वार्थ नहीं बनता .... और जब यह ठुकरा देते हैं तो हमारा दिल टूटता है। ....
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जब चारों तरफ कोई अपना नहीं दिखाई देता , तो फिर से भगवान की शरण में आते हैं।
भगवान तो पहले से ही अपने थे , लेकिन हमारी दशा जहाज के पंछी जैसी थी ,
जो समुद्र में एक जहाज पर बैठा था। .. आराम से था। ... कोई चिंता नहीं थी। ...

लेकिन उसने जहाज के अलावा उसने दूसरा सहारा ढूंढ ने की कोशिश की ...
बहुत दूर-दूर तक उड़ान भरी लेकिन ?

समुद्र में उसे कहीं बैठने का सहारा नहीं मिला , थक हार कर फिर जहाज पर आ गया

" जैसे उड़ जहाज को पंछी फिर जहाज पर आवे

मेरो मन अनत कहां सुख पावे।।
संसार के सहारे ढूंढने का मतलब है , "भटकना" जब परमानेंट हमारी व्यवस्था भगवान की शरण में है तो शरण ही ग्रहण करना चाहिए .
.सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया


जय श्री राधे जय श्री कृष्ण


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