इस बार रक्षाबंधन को लेकर लोगों की द्विविधा बनी हुई है कि रक्षाबंधन 11 अगस्त को मनाए या 12 अगस्त 2022 को ,इस विषय में पंचांग के अनुसार 11 अगस्त को पूर्णमासी 10:00 बजे के बाद आई है अतः दिन में 10:00 बजे के बाद रक्षाबधन मनाया जा सकता है , और यही पूर्णमासी 12 अगस्त को सुबह 7:00 बजे तक है , यद्यपि एकमत ऐसा भी है कि जिस दिन उदया तिथि हो उस दिन की तिथि मानना ठीक है, इस हिसाब से भी 12 अगस्त को पूर्णमासी उदया तिथि के अंतर्गत आती है अतः सुबह 7:00 बजे तक मनाया जा सकता है। यहां पर हम एक निवेदन करना चाहेंगे कि इस महत्वपूर्ण पर्व पर हम भ्रमित ना हो, 11 तारीख के 10:00 बजे के बाद से 12 तारीख के सुबह 7:00 बजे तक जिसको जब सुविधा पड़े प्रेम पूर्वक त्योहार को मनाना चाहिए। किसी भी तरह का भ्रम त्योहार का मजा किरकिरा कर देता है ,जैसे कोई भोजन करने बैठा हो और उससे कह दिया जाए कि हमें ऐसा लगता है कि, सब्जी...
प्रेरणा के पल (6 )
चोर पर भी कृपा
धन्यवाद बाबू जी | |
हमारा गांव मध्य प्रदेश के बॉर्डर पर है, बीच में नदी है
इस पार यूपी और... उस पार एमपी
गांव से लगभग 7 किलोमीटर दूर एमपी का गांव है, छाती पहाड़ी ,जहां पर बाबूजी प्रतिदिन पढ़ाने जाते थे।
हम लोग उस समय छोटे-छोटे थे, उनका कोई सहयोगी नहीं था , इसलिए खेती बटाई पर होती थी ,
धन्यवाद बाबू जी | |
हमारा गांव मध्य प्रदेश के बॉर्डर पर है, बीच में नदी है
इस पार यूपी और... उस पार एमपी
गांव से लगभग 7 किलोमीटर दूर एमपी का गांव है, छाती पहाड़ी ,जहां पर बाबूजी प्रतिदिन पढ़ाने जाते थे।
हम लोग उस समय छोटे-छोटे थे, उनका कोई सहयोगी नहीं था , इसलिए खेती बटाई पर होती थी ,
स्कूल करनेके बाद कभी-कभी बाबूजी खेतों पर भी जाते थे ।
एक दिन शाम को चना का खेत देखने गए थोड़ा थोड़ा अंधेरा भी हो रहा था,
बाबू जी ने देखा कि
एक व्यक्ति खेत से चने उखाड़ रहा है ,तुरंत ही बाबूजी
एक पेड़ के पीछे छुप गए, और उस व्यक्ति ने एक गट्ठा
चना उखाड़े और सिर पर रखकर चल दिया ।
बाबूजी छिपे रहे और जब तक वह बहुत दूर
नहीं निकल गया तब तक छुपे रहे। इस घटना को
उन्होंने किसी से नहीं बताया ...
एक व्यक्ति खेत से चने उखाड़ रहा है ,तुरंत ही बाबूजी
एक पेड़ के पीछे छुप गए, और उस व्यक्ति ने एक गट्ठा
चना उखाड़े और सिर पर रखकर चल दिया ।
बाबूजी छिपे रहे और जब तक वह बहुत दूर
नहीं निकल गया तब तक छुपे रहे। इस घटना को
उन्होंने किसी से नहीं बताया ...
बरसों बाद 1 दिन किसी प्रसंग वश ,उन्होंने हंसते हुए इस घटना को सुनाया ,हमने पूछा
आपने उसे रोका क्यों नहीं ? तो उन्होंने बड़ा सरलजवाब दिया ,
"चोरी करने का निर्णय व्यक्ति तभी लेता है
आपने उसे रोका क्यों नहीं ? तो उन्होंने बड़ा सरलजवाब दिया ,
"चोरी करने का निर्णय व्यक्ति तभी लेता है
जब उसकीकोई बहुत बड़ी मजबूरी होती है, . यद्यपि कुछ लोगों की"आदत "की मजबूरी होती है,
लेकिन फिर भी हमउसकी मजबूरी ही मानते हैं। हम उस से ना गुस्सा हुए ,और ना ही उससे कभी
कहा कि तुमने ऐसा क्योंकिया ? जबकि वह व्यक्ति कभी कभार हमारे पास मिलने भी आता था
हमने इसे उसकी आर्थिक मजबूरी मानकर भगवान से प्रार्थना भी की थी प्रभु इसपर कृपा करो" ।
सज्जनों ! अगर इस घटना को न्यायिक दृष्टि से देखा जाए तो, चोरी पर अंकुश
लगाना बहुत आवश्यक है ,लेकिन अगर मानवीय दृष्टि से देखा जाए तो हमें समाज के हर प्राणी के
सुख दुख का ध्यान रखना चाहिए ।
अगर हम अपने बच्चे को अपने ही घर में , लड्डू चुराते हुए देखें, तो क्या हम उसकी
पुलिस में रिपोर्ट करते हैं ? क्या हम उसे दंडित करते हैं? बल्कि माता पिता होने के नाते
यह सोचते हैं,
कि शायद यहभूखा हो या, लड्डुओं से तृप्ति ना हुई हो, परमात्मा का भी सृष्टि के हर प्राणी पर यही दृष्टिकोण है!
एक संत जी का बहुत बड़ा आश्रम था ,आश्रम में ना जाने कहां से एक शराबी आ गया ,औरइस बात की
सूचना जब संत जी को मिली ,तो उन्होंने धक्के मारकर उसे बाहर निकलवा दिया ।संत जी बहुत बड़े भगवान के
भक्तभी थे रात्रि में उन्हें स्वप्न में भगवान का दर्शन हुआ, और भगवान ने कहा "
"क्यों भाई उसआदमी को तुमने इतनी बेरहमी से क्यों आश्रम से बाहर निकलवा दिया ,
जब हमारी सृष्टि में उसके लिए जगह है तो तुम्हारे
आश्रम में क्यों नहीं ? "
संत जी को अपनी भूल का अहसास हुआ ,और उस शराबी को खोज कर ,उसकी समस्याओं
"क्यों भाई उसआदमी को तुमने इतनी बेरहमी से क्यों आश्रम से बाहर निकलवा दिया ,
जब हमारी सृष्टि में उसके लिए जगह है तो तुम्हारे
आश्रम में क्यों नहीं ? "
संत जी को अपनी भूल का अहसास हुआ ,और उस शराबी को खोज कर ,उसकी समस्याओं
का समाधान किया, और उसे सत्संग के माध्यम से प्रेरणादी, परिणाम यह हुआ वह सुधर गया और उसका परिवार
आनंदमय हो गया ।
"भगवान का जो स्वभाव है वह परम दया का है ",
भगवान के जो परम भक्त होते हैं, उनका भी स्वभाव अपने प्रभु के जैसा ही होता है, वे भी करुणावान होते हैं, ।
"भगवान का जो स्वभाव है वह परम दया का है ",
भगवान के जो परम भक्त होते हैं, उनका भी स्वभाव अपने प्रभु के जैसा ही होता है, वे भी करुणावान होते हैं, ।
एक बहुत प्रसिद्ध घटना आप सभी जानते हैं, एक संत जी स्नान कर रहे थे,एक बिच्छू बहता हुआ जारहा था,
डूब रहा था ,
प्राण छटपटा रहे थे
संत जी की करुणा जागी, साथ में यह भी विचार आया यह बिच्छू है, काटेगा जरूर ,लेकिन परोपकार के
डूब रहा था ,
प्राण छटपटा रहे थे
संत जी की करुणा जागी, साथ में यह भी विचार आया यह बिच्छू है, काटेगा जरूर ,लेकिन परोपकार के
आगे स्वार्थ हार गया , और संत जी ने बिच्छू को हाथ पर उठा लिया , बिच्छू को जैसे ही होश आया उसने
तुरंत उनके हाथ में काट लिया ... पीड़ा से हाथ हिला ...बिच्छू पानी में गिर गया ....
फिर से एक बार डूबने लगा, संत जी ने सोचा
चलो एक बार फिर सही ...
और फिर से उन्होंने दूसरे हाथ से उसे पकड़ा ,और जल्दी से किनारे पर आकर उसे जमीन परछोड़ दिया ।
तुरंत उनके हाथ में काट लिया ... पीड़ा से हाथ हिला ...बिच्छू पानी में गिर गया ....
फिर से एक बार डूबने लगा, संत जी ने सोचा
चलो एक बार फिर सही ...
और फिर से उन्होंने दूसरे हाथ से उसे पकड़ा ,और जल्दी से किनारे पर आकर उसे जमीन परछोड़ दिया ।
इस बीच में उसने दूसरे हाथ में भी काट लिया।
बाहरी दृष्टि से देखने पर ऐसा लगता है कि, ऐसे दुष्ट स्वभाव बालों पर कृपा नहीं करना चाहिए,
लेकिन जब इसको सर्वोच्च दृष्टिकोण से जोड़ते हैं, तो पिता पुत्र का उदाहरण लीजिए ...
लेकिन जब इसको सर्वोच्च दृष्टिकोण से जोड़ते हैं, तो पिता पुत्र का उदाहरण लीजिए ...
पुत्र कितनी गलतियां करता है, जिसकी गिनती नहीं होती ,
लेकिन पिता कितना क्षमा करता है इस महानता को भी देखना चाहिए ,अगर पिता बचपन से ही
पुत्र के प्रति
न्यायिक दृष्टिकोण रखें ,
अनुशासन का भाव रखें,
तो क्या संतान उन्नति कर पाएगी ?
लेकिन पिता कितना क्षमा करता है इस महानता को भी देखना चाहिए ,अगर पिता बचपन से ही
पुत्र के प्रति
न्यायिक दृष्टिकोण रखें ,
अनुशासन का भाव रखें,
तो क्या संतान उन्नति कर पाएगी ?
या
बार-बार स्वाभाव वश होने वाली गलती से, प्राप्त होने वाले दंड से विक्षिप्त हो जाएगी।
जिस तरह से पिता पुत्रों के अपराधों को सहन करता है ,इसी तरह से परमात्मा भी अपने सृष्टि के सभी
जीवो के अपराधों को क्षमा करते हैं,
सहन करते हुए बार बार समझाते भी हैं
उन्हें सुधरने के बहुत मौके भी देते हैं,
जब किसी भी तरह से उनमें सुधार नहीं होता है
तब उन पर कृपा करके उनका संहार भी करते हैं।
सहन करते हुए बार बार समझाते भी हैं
उन्हें सुधरने के बहुत मौके भी देते हैं,
जब किसी भी तरह से उनमें सुधार नहीं होता है
तब उन पर कृपा करके उनका संहार भी करते हैं।
अगर परमात्मा का दृष्टिकोण क्षमा करने का नहीं होता ,तो सृष्टि का विकास नहीं हो सकता था ।
मनुष्य के द्वारा गलतियां होना उसकी मजबूरी है, यह उसका स्वभाव है, कई बार कुसंग के कारण मनुष्य अपराध
मनुष्य के द्वारा गलतियां होना उसकी मजबूरी है, यह उसका स्वभाव है, कई बार कुसंग के कारण मनुष्य अपराध
करता है, तो कई बार पूर्व जन्म के स्वभाव के कारण अपराध करता है.
अतः संत, महापुरुष, सदगृहस्थ, सज्जन, परमात्मा के दृष्टिकोण को ही अपनाते हैं और दुष्टों केअपराधों को
क्षमा करते हैं।
"सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया"
"सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया"
। जय श्री राधे जय श्री कृष्ण ।
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