इस बार रक्षाबंधन को लेकर लोगों की द्विविधा बनी हुई है कि रक्षाबंधन 11 अगस्त को मनाए या 12 अगस्त 2022 को ,इस विषय में पंचांग के अनुसार 11 अगस्त को पूर्णमासी 10:00 बजे के बाद आई है अतः दिन में 10:00 बजे के बाद रक्षाबधन मनाया जा सकता है , और यही पूर्णमासी 12 अगस्त को सुबह 7:00 बजे तक है , यद्यपि एकमत ऐसा भी है कि जिस दिन उदया तिथि हो उस दिन की तिथि मानना ठीक है, इस हिसाब से भी 12 अगस्त को पूर्णमासी उदया तिथि के अंतर्गत आती है अतः सुबह 7:00 बजे तक मनाया जा सकता है। यहां पर हम एक निवेदन करना चाहेंगे कि इस महत्वपूर्ण पर्व पर हम भ्रमित ना हो, 11 तारीख के 10:00 बजे के बाद से 12 तारीख के सुबह 7:00 बजे तक जिसको जब सुविधा पड़े प्रेम पूर्वक त्योहार को मनाना चाहिए। किसी भी तरह का भ्रम त्योहार का मजा किरकिरा कर देता है ,जैसे कोई भोजन करने बैठा हो और उससे कह दिया जाए कि हमें ऐसा लगता है कि, सब्जी...
प्रेरणा के पल (4 ) आचार्य दिव्यांग भूषण बादल
| | हमारे जीवन का परिवर्तन भगवत गीता से हुआ | |
सन 1992 । हम अपनी छोटी बहन के लिए घर वर देखने पन्ना जा रहे थे रास्ते में पढ़ने के लिए उपन्यास ढूंढ रहे थे ,उस समय हमें उपन्यास पढ़ने का बहुत शौक था !
हमें परेशान देखकर बाबूजी ने पूछा क्या बात है ?
हमने कहा कोई किताब ढूंढ रहे हैं, जिससे रास्ते का समय कटेगा, उन्होंने भगवत गीता की अर्थ सहित छोटी सी पुस्तक देते हुए कहा
" इस बार इसे पढ़ो,"
चूंकि जल्दी जाना था, सोचने विचारने का समय नहीं था, पढ़ने का शौक था, सोचा चलो आज गीता ही पढ़ते हैं । पुस्तक को लिया बैग में रखा और बस में बैठ गए ,.
पढ़ना शुरू किया भगवान की कृपा, पिताजी का आशीर्वाद ऐसा मन लगा की पन्ना तक पूरी गीता पढ़ ली ,लौटते समय भी एक बार और पढ़ी ...
"अगर माध्यम मजबूत हो तो जीवन परिवर्तन होते समय नहीं लगता "
कहां बड़े-बड़े उपन्यास कारों की अच्छी-अच्छी लच्छेदार किताबें पढ़ने का शौक था ! और कहां भगवत गीता ? परिवर्तन हुआ ... और अब नया शौक लग गया गीता पढ़ने का... बाबूजी को जब हमने यह बताया तो बड़े खुश हुए और बोले
" तुम्हारा असली लक्ष्य यही है "
सज्जनों बहुत बड़ी बात तो यह है कि उस समय हम घर पर ही थे
पढ़ाई पूरी हो चुकी थी ,
.
संगीत की शिक्षा भी हो चुकी थी
आकाशवाणी में उद्घोषक के रूप में भी कुछ वर्ष काम कर चुके थे
लेकिन घर की आवश्यकताओं को देखते हुए जिम्मेदारियों को देखते हुए खेती करने का निर्णय लिया /
. यद्यपि पूज्य बाबूजी इस निर्णय से सहमत नहीं थे, उनका यही कहना था कि अपना
" संगीत और साहित्य का मार्ग प्रशस्त करो "
किंतु मुझे जिम्मेदारियां प्रेरित कर रही थी, और लगभग मैंने 14 वर्ष कृषि कार्य करके बाबू जी की संपूर्ण जिम्मेदारी को पूर्ण किया । भगवत गीता का अध्ययन चलता रहा चूंकि बाबूजी गीता के बहुत बड़े उपासक थे इसलिए उन्होंने गीता की लगभग 100टीकाएं एकत्रित करके रखीं थीं, सो बड़े-बड़े महापुरुषों के गीता के विभिन्न भावों को अध्ययन करता रहा।
,और सन 2002 से संपूर्ण गृह कार्यों से निवृत्त होकर एक नई दिशा
"श्रीमद् भागवत कथा" करने का शुभारंभ किया।
चूंकि लक्ष्य नया था, बड़ा था, इसलिए नौगांव जिला छतरपुर में रहने का निर्णय लिया। यहां एक बात का उल्लेख करना बहुत जरूरी समझता हूं, कि जिस समय माता कैकई ने भगवान राम को 14 वर्ष का वनवास मांगा था, तो इसके पीछे यही सोच थी जो व्यक्ति 14 वर्ष तक लगातार बनवास करेगा वह, किसी भी कीमत पर राजनीति करने योग्य नहीं रहेगा, क्योंकि 14 वर्ष मैं मानसिकता जड़ जाती है।
, मैं भी यही सोचता हूं कि 14 वर्ष कृषि कार्य करने वाला व्यक्ति श्रीमद्भागवत जैसे सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ की व्याख्या मंचों पर कुशलतापूर्वक कैसे कर सकता है? तो इसका जवाब यही है कि केवल भगवत गीता की कृपा है जिसके कारण आज हम गीता और भागवत के माध्यम से समाज सेवा कर रहे है। जय श्री राधे जय श्री कृष्ण।
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