प्रेरणा के पल (3 ) आचार्य दिव्यांग भूषण बादल
| | बाबू जी का सेवा भाव | |
हमारे जीवन में दो तरह से सुख का अनुभव होता है, बल्कि यूं कहा जाए कि विशेष सुख का अनुभव होता है । पहला तो यह है कि जब हमारा मनचाहा मनपसंद काम बन जाता है तो बड़ा अच्छा लगता है। दूसरा जब किसी का मनचाहा मनपसंद काम हमारे द्वारा बनता है और जब वह प्रसन्न होता है तो उसकी प्रसन्नता से जो हमारे अंदर खुशी आती है ,वह खुशी, वह प्रसन्नता, "आनंद "कहलाती है ।
इसका अनुभव सभी को नहीं होता, इसका अनुभव तो सिर्फ उन लोगों को होता है जिन्होंने अपनी हस्ती को मिटा कर सिर्फ दूसरों को सुखी देखने का संकल्प लिया हो, ऐसे महापुरुष बिरले ही होते हैं। इस महानता का दर्शन हमने अपने पूज्य पिता जी में (जिन्हें हम बाबू जी कहते हैं ) कई बार किया।
सन 2000 या 2001 की बात है उस समय मोबाइल का प्रचलन बहुत कम था , ग्रामीण क्षेत्रों में इस सुविधा के लिए भारत सरकार ने w.l.l. फोन सुविधा उपलब्ध कराई थी , इसमें एक टावर लगता था और फोन रिसीवर भी होता था ... उस समय पूरे गांव में यह सुविधा केवल हमारे घर पर थी, गांव के लोगों को जैसे-जैसे पता लगता गया उन्होंने हमारा नंबर लिया और आवश्यकता पड़ने पर हमारे घर फोन करना शुरू किया, गांव बहुत बड़ा है बहुत लोग रिश्तेदारों से फोन करते थे और बहुत लोग जो मजदूरी करने दिल्ली जाते थे भी अपने घर पर सूचना भेजने के लिए हमारे घर फोन करते थे,
... जैसे ही किसी का फोन आता हमारे बाबूजी वृद्धा अवस्था होने के बावजूद भी उसके घर जाते और बड़े प्रेम से उसे कहते कि आपका फोन आया है, लोग बड़े खुश होते और आकर के फोन से जानकारी लेते थे। आपको सुनकर के बड़ा आश्चर्य होगा कि किसी किसी दिन तो दिन में 10 या 15 फोन आते! और बाबू जी बड़े प्रेम से सबके घर जा जाकर सूचना देते थे,, हम लोगों ने कई बार कहा कि आपकी अवस्था इतनी अच्छी नहीं है कि दिन भर आप भागदौड़ करते रहे लेकिन वह बड़े शांत भाव से कहते कि
"इसका मजा तुम क्या जानो? जब भी किसी के चेहरे पर खुशी आती है तो उस खुशी से हमारी बैटरी चार्ज हो जाती है "
"हमें पता ही नहीं चलता कि हम गांव में कितनी बार गए"।
बाबूजी मध्यप्रदेश में अध्यापक थे प्रतिदिन m80 से पढ़ाने जाया करते थे जैसे ही रोड पर पहुंचते तो मोटरसाइकिल रोककर रस्ता में चलने वालों से पूछते कहां जाना है? फिर उनको बड़े प्रेम से गाड़ी पर बिठा लेते थे शायद ऐसा कोई दिन गया हो जब वह अकेले गए हो, लोगों ने उनसे पूछा कि आप इतना क्यों परेशान
होते हो ?तो उनका बड़ा सहज जवाब होता था
"हमें तो जाना ही है, पेट्रोल लगना ही है ,अगर किसी का भला होता है, तो जरूर करना चाहिए दूसरों की खुशी से बढ़कर कोई धर्म पुण्य नहीं है"
।
एक और बहुत बड़ी बात उन्होंने बताई कि
"40 साल की सेवा में हमने कभी किसी बच्चे को नहीं पीटा,"
और उनके पढ़ाये हुए बच्चे आज भी बड़े पदों पर हैं, और बाबूजी को भी याद करते हैं!
यह चर्चा मैंने खासतौर से उन अध्यापकों के लिए की है जो यह सोचते हैं कि "बिना भय के अनुशासन नहीं होता है "
अगर वह बाबूजी के दृष्टिकोण से देखें तो प्रेम में इतनी सामर्थ है कि कुछ भी हो सकता है। ऐसे उदार चित् पूज्य बाबूजी को सादर प्रणाम, और उन लोगों को भी एडवांस प्रणाम करते हैं जो इस चर्चा से प्रेरणा लेकर कुछ अच्छा सोचेंगे। सर्वे भवंतु सुखिनः इस पवित्र भावना के साथ सादर जय श्री कृष्ण जय श्री राधे !
आचार्य दिव्यांग भूषण बादल
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