प्रेरणा के पल (2 )
भयंकर अग्नि कांड में भी " बाबू जी का संतुलन "
बात उन दिनों की है जब हम अपनी जन्मभूमि ग्राम घाट कोटरा (झांसी) मैं रहते थे उस समय मेरी उम्र लगभग 12 वर्ष या 13 वर्ष की होगी हमारी खेती बटाई पर होती थी, गांव के ही एक ठाकुर साहब बटाई पर लिए थे।
गेहूं की फसल खलिहान में आ गई थी, इस समय गेहूं के लिए थ्रेशर का चलन शुरू हुआ था , हमारे बहुत करीबी रिश्तेदार ने नया ट्रैक्टर खरीदा था और थ्रेसर भी, उस ट्रेक्टर में साइलेंसर का मुंह ऊपर की ओर ना होकर नीचे की ओर था, गर्मी का समय था, थ्रेसिंग हो रही थी, अचानक साइलेंसर से एक चिंगारी निकली और पास में रखी गेहूं की फसल में छू गई...बाबूजी का उस समय का संतुलन आज भी हमारे जीवन में प्रेरणा बना हुआ है, और जब कभी भी कोई विकट परिस्थिति आती है, या आएगी, तो मैं उस घटना का स्मरण कर लेता हूं।
इनका स्वभाव जन्म से ही अच्छा होता है।
दूसरे वह लोग होते हैं जो इस जन्म में पूरी तरह से अपनी बुद्धि को भगवान के श्री चरणों में समर्पित कर देते हैं, उनका स्वभाव भी भगवान की कृपा से भगवान जैसा ही हो जाता है।
जैसे कोई व्यक्ति अपना दिल जिसको भी देता है तो उसके दिल में उसका स्वभाव आने लगता है दिल देना ही बुद्धि समर्पण है।
मानव जीवन में यह उपाय सबसे सरलऔर सबसे सुगम और सबसे श्रेष्ठ है ,क्योंकि हमारा स्वभाव निश्चित रूप से पिछले जन्म के कर्मों के हिसाब से बनाया जाता है, जो कि जीवन भर नहीं बदलता, लेकिन जो अपने मन को यानी बुद्धि को या दिल को भगवान के चरणों में अर्पित कर देते हैं यानी उन से प्रेम करने लग जाते हैं जिसे भक्ति भाव कहा जाता है उनका स्वभाव निर्मल हो जाता है और भी इस संसार में बड़े आनंद से जीवन बिताते हैं।
अगर आपको यह प्रकरण अच्छा लगा हो तो भगवत भक्ति की ओर मन को मोड़िए , निस्संदेह आनंद मय जीवन बनेगा।
सर्वे भवंतु सुखिनः इस भावना के साथ सादर जय श्री कृष्ण जय श्री राधे।
आचार्य दिव्यांग भूषण बादल
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