इस बार रक्षाबंधन को लेकर लोगों की द्विविधा बनी हुई है कि रक्षाबंधन 11 अगस्त को मनाए या 12 अगस्त 2022 को ,इस विषय में पंचांग के अनुसार 11 अगस्त को पूर्णमासी 10:00 बजे के बाद आई है अतः दिन में 10:00 बजे के बाद रक्षाबधन मनाया जा सकता है , और यही पूर्णमासी 12 अगस्त को सुबह 7:00 बजे तक है , यद्यपि एकमत ऐसा भी है कि जिस दिन उदया तिथि हो उस दिन की तिथि मानना ठीक है, इस हिसाब से भी 12 अगस्त को पूर्णमासी उदया तिथि के अंतर्गत आती है अतः सुबह 7:00 बजे तक मनाया जा सकता है। यहां पर हम एक निवेदन करना चाहेंगे कि इस महत्वपूर्ण पर्व पर हम भ्रमित ना हो, 11 तारीख के 10:00 बजे के बाद से 12 तारीख के सुबह 7:00 बजे तक जिसको जब सुविधा पड़े प्रेम पूर्वक त्योहार को मनाना चाहिए। किसी भी तरह का भ्रम त्योहार का मजा किरकिरा कर देता है ,जैसे कोई भोजन करने बैठा हो और उससे कह दिया जाए कि हमें ऐसा लगता है कि, सब्जी...
आपबीती
"आई बाढ़ सन तेरासी में "
सन 1983 में भयंकर बाढ़ का आँखों देखा हाल ,
हमारा ग्राम घाट कोटरा जो कि झांसी जिले में है, तीन नदियों के मध्य में बसा हुआ है
। गांव के बाई तरफ कुड़ार नदी है, और दाहिनी ओर धसान और उर्मिल का संगम है। भादो के
महीने में तीजा का बड़ा महत्व है महिलाओं का बहुत ही अच्छा व्रत है, सो उस दिन तीजा ही थी
अचानक सुबह 4:00 बजे धसान नदी की ओर से पानी भरना शुरू हुआ, और बाढ़ इतनी तेजी से
आई कि भागना मुश्किल पड़ गया ...
उस समय क्या हाल हुआ ? इसका ज्यों का त्यों पूरा वर्णन पूज्य बाबूजी ने उस समय एक गीत में
किया था
उसे ही हम यहां लिख रहे हैं।
सुमिर गजानन गणपति ,गरुड़ध्वज गोपाल
"बादल " वर्णत बाढ़ का,रचयिता आँखों देखा हाल।
आई बाढ़ सन तेरासी में, जिसकी सुनो कहानी । पानी पानी पानी पानी ,जां देखो तां पानी ।
हती रात तीजा की प्यारी, घर-घर ढुलकें बज रयीं।
जीके ना देखो तीके ना, नई-नई झांकी सज रयीं
।
नाच गान में कड़ी रात, सब बारे बूढ़े सो गए ।
नाच गान में कड़ी रात, सब बारे बूढ़े सो गए ।
चार बजे भुनसारे देखा ,गडड बडड सब हो गए ।
टंगे फुलारा रये जां के तां, अठवाईं उतरानी . पानी पानी पानी पानी जां देखो तां पानी
पानी धस आया गांव वीच, संकट मे में प्रान भये हैं
तब ढोर बछेरू और वैलवा ,सब नें छोड़ दये है
हो गये अदा तुम आज हमारे, सुनों नोंन पानी से
आंसू भरकर के कहा जाय, तुम लड़ो जिन्दगानी से
मैया प्रान बचा दो जनता, हाय हाय चिल्लानी , पानी पानी ............
कुछ भगे कदौरा पुरुवा कुछ, कुछ घर से नई भग पाये हैं
कुछ जान बूझ कर रुके रहे ,बेशरमाई मुड़याये हैं ।
पहुचे है जब सब पहाड़ पै ,तब ममता ने घेरो
अक्क वक्क सब भूल गये ते, आंचर तक कौ टेरो
विलख विलख कें है रोरई ती, कलिया की देवरानी , पानी पानी पानी .......
नीचें नद्दी वहै और, ऊपर सें वरसे पानी
मोड़ी मौड़ा कुकर गये सब, हवा खूब सन्नानी
ऐड़ खुल गई भूख के मारें दिन भर रये टन्नाने
शाम कें सेवफल वटती वेरां ,चगन मगन चन्नाने
विपदा वांटी जात है कैंसें मऊ वारन नें जानी , पानी पानी पानी ...
(बाढ़ उतरने के बाद जब गांव में आकर के लोगों ने अपने घरों का हाल देखा तो विलख उठे)
कां लौ करिये कर्री छाती कां लौ धीरज धरिये
कौन दुगई में वैला बाधें कौन पोंर में परिये
सेंव चूले के रोटी वारो घर जानें कांगओ है
जिते घरी ती लुंजिया पुंजिया उतै सो खदरा भओ है
पेट काट पुरखन नें जोरो वौ तक सब वै गओ है
हाय विधाता कैसौ हुइये का सें का जौ भओ है
कहें "दिव्यांग" सुनो , ऊ वेरां हती भौत हैरानी, पानी पानी पानी पानी जां देखो तां पानी
जय श्री राधे जय श्री कृष्ण।
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