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रक्षाबंधन कब है 11या 12 अगस्त 2022को

         इस बार रक्षाबंधन को लेकर लोगों की द्विविधा बनी हुई है कि रक्षाबंधन 11 अगस्त को मनाए या 12 अगस्त 2022  को             ,इस विषय में पंचांग के अनुसार 11 अगस्त को पूर्णमासी 10:00 बजे के बाद आई है अतः दिन में 10:00 बजे के बाद रक्षाबधन मनाया जा सकता है ,         और यही पूर्णमासी 12 अगस्त को सुबह 7:00 बजे तक है , यद्यपि एकमत ऐसा भी है कि जिस दिन उदया तिथि हो उस दिन की तिथि मानना ठीक है,          इस हिसाब से भी 12 अगस्त को पूर्णमासी उदया तिथि के अंतर्गत आती है अतः सुबह 7:00 बजे तक मनाया जा सकता है। यहां पर हम एक निवेदन करना चाहेंगे कि इस महत्वपूर्ण पर्व पर  हम भ्रमित ना हो,      11 तारीख के 10:00 बजे के बाद से 12 तारीख के सुबह 7:00 बजे तक जिसको जब सुविधा पड़े प्रेम पूर्वक त्योहार को मनाना चाहिए।          किसी भी तरह का भ्रम त्योहार का मजा किरकिरा कर देता है ,जैसे कोई भोजन करने बैठा हो और उससे कह दिया जाए कि हमें ऐसा लगता है कि, सब्जी...

      भक्त और भगवान 

 | |  मऊरानीपुर के भगवान लठा टोर जी | |


बुंदेलखंड में मऊरानीपुर ( झाँसी ) का जलविहार मेला बहुत ही प्रसिद्ध है। हजारों नहीं लाखों व्यक्ति इस मेला में आते हैं ,यद्यपि परंपरा की दृष्टि से देखा जाए तो मेला का अर्थ होता है बहुत सारी दुकान, सर्कस , थिएटर ,और ना जाने कितने तरह के मनोरंजन के साधन, लेकिन मऊरानीपुर के जलविहार मेला में यह मनोरंजन तो बोनस के रूप में हैं ,
असली खेल तो कुछ दूसरा ही है ...
मऊरानीपुर में बहुत ज्यादा मंदिर है , और इस मेला में हर मंदिर से भगवान् कीं झांकियों को विमानों में सजा कर नगर भ्रमण कराते हैं , लाखों लोग इन्हें झांकियों का दर्शन करने आते हैं, और इन विमानों में ब्राजे भगवान के विभिन्न श्री विग्रहों का भ्रमण के बाद सुखनई नदी में जाकर के जलविहार होता है।

कहानी यहां पूरी नहीं होती है , बल्कि असली कहानी का तो अब शुभारंभ होने जा रहा है
इन सैकड़ों झांकियों में एक झांकी निकलती है
," भगवान लठाटोर जी" की

यही वो झांकी है जिसके कारण से मऊरानीपुर का जलविहार मेला कई सालों से आस्था का केंद्र बना हुआ है।

तोआइए अब सुनाते हैं असली कथा भगवान लठा टोर श्री राधा कृष्ण जी का नाम है

जब मेला नहीं भरता था केवल जलविहार होता था , उस समय भगवान राधा कृष्ण जी को विमान में विठाला गया, शंख झालर की ध्वनियों के साथ जयकारे के साथ जैसे ही 4 भक्तों ने विमान को उठाया .....
तो तुरंत ही विमान के नीचे जो बड़े-बड़े लठ्ठे लगे थे वे तड़ाक की आवाज के साथ टूट गए ..

लोगों को लगा कि शायद लट्ठे पुराने होंगे इसलिए टूट गए , आनन-फानन में अच्छे और मजबूत और मोटे लट्ठे फिर से विमान के नीचे बांधे गए ,और जयकारा लगाते हुए फिर से विमान उठाया , लेकिन भगवान की मर्जी कुछ और थी , लट्ठे फिर से टूट गए ....... अब तो कुछ लोगों के अंदर भय और कुछ लोगों के अंदर चमत्कार की भावना उठने लगी ....

दो बार , तीन बार , चारबार , , लट्ठे टूटे , तब सभी लोग निराश होकर पुजारी जी श्री घनश्याम दास जी से कहने लगे ,
" आप ही बताओ क्या होना चाहिए " ?
चूँकि घनश्याम दास जी अपने भगवान की नटखट लीलाओं की चर्चा, अपनी माताजी से सुन चुके थे ,सो वे बोले इनका इलाज तो माता जी ही कर सकतीं हैं ,
सभी भक्त लोगों ने घनश्याम दास जी की माता जी से कहा
" माताजी अब आप ही कुछ करो"
माताजी भगवान की परम भक्त थीं , और वे भगवान श्री कृष्ण जी को पुत्र रूप में मानतीं थीं,

सज्जनों यहां से अब कथा कुछ विचित्र होने वाली है ,आगे की कथा पर सिर्फ वह लोग विश्वास करेंगे, जिनके अंदर भगवान की थोड़ी बहुत भक्ति होगी ..

माताजी ने पूरा हाल सुना और समझ गई आज "मेरा लाला " मऊरानीपुर के भक्तों पर कृपा करना चाहता है , अंदर ही अंदर बड़ी खुश हुई , और कन्हैया जी से कहा

" ज्यादा परेशान मत करो जाओ अच्छी तरह से जल विहार करके आ जाओ "

ऐसा कह के लोगों से कहा , "फिर से नए लट्ठा बांधो," लोगों ने फिर जैसे तैसे करके नए लट्ठों का इंतजाम किया , और फिर जयकारा के साथ उठाया , लेकिन ...

फिर वही हाल हुआ , लट्ठा फिर तड़ाक के साथ टूट गए,

माताजी ने जब यह देखा तो इनको गुस्सा आ गया ,और दौड़ कर अंदर गई , अंदर से लाठी उठाई
और लाठी लेकर के यशोदा मैया की तरह भगवान को दिखाती हुई बोलीं

" चुपचाप जलविहार को चले जाओ नहीं तो बहुत मार पड़ेगी "

सज्जनों भगवान कितने दयालु है ,अपने भक्तों की महिमा बढ़ाने के लिए कितना अपमान सहन करते हैं ,
माताजी ने जैसे ही कहा
तुरंत ही टूटे हुए लट्ठे जुड़ गए ,और जय कारा लगने लगा ,और भगवान का विमान जल यात्रा के लिए निकल पड़ा .

"बस तभी से उन भगवान श्री कृष्ण का नाम लठाटोर महाराज पड़ गया "

इस घटना की चर्चा जब आसपास के गावों में पहुंची तो लोग दर्शन करने के लिए उमड़ पड़े , बिना आयोजन का मेला शुरू हो गया , बस फिर क्या था मऊरानीपुर वालों ने योजना बनाकर के विस्तृत रूप से , इस आयोजन का नाम " मेला जलविहार रखा " और फिर इस मेला की कहानी दूर-दूर तक फैलने लगी।
कुछ वर्षों बाद कुछ पढ़े-लिखे लोग या संदेह करने बाले लोगों ने कहा अब विमान से नहीं ,
जीप कार पर लेकर जाएंगे अब लट्ठा टूटने का काम ही खत्म है ऐसा विचार करके नए टायरों वाली जीप में भगवान का विमान तैयार किया गया , और जयकारा लगाकर जैसे ही जीप स्टार्ट की कि .........

तुरंत ही चारों टायर एक साथ फटाक की आवाज के साथ फूट गए ,

उस समय इन नए नवेले नास्तिक लोगों का चेहरा देखने लायक था , ,
फिर से माताजी को कहा गया " मैया अपने कन्हैया को मनाओ "

दूसरी जीप बुलाई गई , और उस पर भगवान को विठाला गया मैया ने माखन मिश्री खिलाया

और कहा "बेटा ज्यादा परेशान मत किया करो "

और जयकारा लगाया , जीप चल दी ,लोग फिर से जयकारा लगाने लगे ,

" लट्ठा टोर भगवान की जय"

         तब से लेके अब तक भगवान लठा टोर की कृपा सभी पर बरस रही है  .

" सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया " जय श्री राधे जय श्री कृष्ण।

आचार्य दिव्यांग भूषण बादल


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