इस बार रक्षाबंधन को लेकर लोगों की द्विविधा बनी हुई है कि रक्षाबंधन 11 अगस्त को मनाए या 12 अगस्त 2022 को ,इस विषय में पंचांग के अनुसार 11 अगस्त को पूर्णमासी 10:00 बजे के बाद आई है अतः दिन में 10:00 बजे के बाद रक्षाबधन मनाया जा सकता है , और यही पूर्णमासी 12 अगस्त को सुबह 7:00 बजे तक है , यद्यपि एकमत ऐसा भी है कि जिस दिन उदया तिथि हो उस दिन की तिथि मानना ठीक है, इस हिसाब से भी 12 अगस्त को पूर्णमासी उदया तिथि के अंतर्गत आती है अतः सुबह 7:00 बजे तक मनाया जा सकता है। यहां पर हम एक निवेदन करना चाहेंगे कि इस महत्वपूर्ण पर्व पर हम भ्रमित ना हो, 11 तारीख के 10:00 बजे के बाद से 12 तारीख के सुबह 7:00 बजे तक जिसको जब सुविधा पड़े प्रेम पूर्वक त्योहार को मनाना चाहिए। किसी भी तरह का भ्रम त्योहार का मजा किरकिरा कर देता है ,जैसे कोई भोजन करने बैठा हो और उससे कह दिया जाए कि हमें ऐसा लगता है कि, सब्जी...
प्रेरणा के पल ( 5 )
संगीत की दुनिया ! सोनी जी के संग ।
सन 1985 दिन गुरुवार समय दोपहर 12:00 बजे मैं अपने बाल सखाओं के साथ देवी जी के मंदिर, जो कि गांवके , शुभारंभ में है से लौट रहा था, रास्ते में
श्री पन्नालाल सोनी जी का मकान था, सोनी जी अपने सोने चांदी की दुकान में ही सितार बजा रहे थे...
सितार के तारों से निकली मनमोहक मधुर ध्वनि ने हमारा ध्यान खींचा और हम उनके दरवाजे पर खड़े होकर
सितार सुनने लगे।
वह बजाने में मस्त थे !
हम सुनने में ...
हमारे साथियों ने एक बार इशारा किया चलो चलें लेकिन उन इशारों को सुनने वाला
तो संगीत में मस्त था , लिहाजा साथी तो चले गए और हम धूप में ही खड़े-खड़े लगभग 30 मिनट तक सुनते
रहे,
अचानक सोनी जी की निगाह ऊपर उठी, और हमें पसीने में भीगा हुआ देखा तो करुणा वश
अंदर बुला लिया पूछने लगे " तुम्हें सितार अच्छा लगता है"
हमने कहा "बहुत अच्छा लगता है"
उन्होंने बड़े प्रेम से कहा " तुम्हें सीखना है ?
हमें तो जैसे कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ कि क्या हम भी सितार सीख सकते हैं???
हमने बड़े असमंजस में कहा कि यह अद्भुत बाजा क्या हम सीख सकते हैं ?
उन्होंने हंसते हुए कहा " क्यों नहीं सीख सकते हो , जब तुम सुन सकते हो! जब तुम समझ सकते हो !
,
तो निश्चित रूप से तुम सीख भी सकते हो !
सज्जनों उनकी मधुर वाणी से जब ऐसे शब्द हमारे कानों में पड़े तो मेरे आंसू निकल आए, और मैंने कहा
"उस्तादजी आप हमें सितार सिखा दो "
उन्होंने बड़ी प्रसन्नता से कहा बेटा! हम भी बहुत दिन से एसे आदमी की तलाश में थे जो सितार सीखे,
हमारा क्या है 2 दिन के मेहमान है !
अगर यह विद्या हमारे साथ चली गई तो, इस गांव से भी जाएगी ,और इस गांव क्या बहुत दूर-दूर तक कोई
सितार नहीं बजाता , इसके लिए हम बहुत चिंतित भी थे , कोई लगन शील विद्यार्थी मिले ,
बेटा ! आज से ही तुम सितार सीखना शुरू करो,। ऐसा कहके उन्होंने सितार सिखाना शुरू कर दिया .
पहले दिन का पहला पाठ लेकर के हम झूमते हुए घर आए, और बाबू जी से कहा कि
" सोनी बब्बा ने हमें सितार सिखाना शुरू कर दिया। बाबूजी भी बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने
हमारी रुचि को , हमारी लगन को ,इतना ज्यादा महत्व दिया , कि जैसे वह पहले से ही चाहते हों ,
सज्जनों यहां एक बात हम अवश्य कहना चाहेंगे बच्चों की रूचि और लगन को देखकर
अभिभावकों को प्रोत्साहन देना चाहिए ,जो अभिभावक अपने बच्चों को अपनी रुचि या अपने पेशा से जोड़ने का
प्रयास करते हैं, उनके बच्चों का भविष्य निश्चित रूप से बर्बाद होता है.
मुझे एक सत्य घटना याद है मैं एक बार रेल के द्वारा इलाहाबाद जा रहा था,
सितार ठीक कराने के लिए, हमारे बगल में एक फौजी भाई बैठे थे, उन्होंने कहा कि आप सितार बजाते हैं,?
मैंने कहा जी हां ! तो उन्होंने अपनी करुण कथा सुनाना शुरू की ,
बोले मेरे पिताजी जिला के चैंपियन पहलवान थे ,तो मुझे भी वह पहलवान बनाना चाहते थे ,
जबकि मेरी इच्छा , मेरी रुचि , मेरी लगन ,संगीत में थी ,मैंने बहुत कहा मुझे संगीत अच्छा लगता है !
लेकिन वह एक नहीं माने , और कहने लगे कि " मैंने इतना नाम कमाया है , मैं डिस्ट्रिक्ट चैंपियन हूं ,
तुम्हें इसी को संभालना है "
,
और उन्होंने मुझे जबरदस्ती अखाड़े में ढकेल दिया परिणाम यह हुआ कि
ना तो मैं पहलवान बन पाया , और ना ही संगीतकार।
अधिकांश ऐसा देखा जाता है डॉक्टर अपने बेटे को डॉक्टर बनाना चाहता है
कथावाचक अपने बेटे को कथावाचक की विरासत देना चाहता है , व्यापारी निश्चित रूप से अपने व्यापार की
कुंजी बच्चे कोही सौंपना चाहता है। , ऐसा सोचना स्वाभाविक है , होना भी चाहिए लेकिन हर बालक के संस्कार
पूर्व जन्म से जुड़े होते हैं।
यदि आपका बेटा, भाई , आपके जॉब में, आपके काम में रुचि नहीं ले रहा है
बल्कि वह कुछ अपनी अलग रुचि को व्यक्त कर रहा है, तो हमें उसकी बात को गंभीरता से लेना चाहिए
क्योंकि जिस काम में रुचि होती है , व्यक्ति उस काम में बहुत जल्दी सफल हो जाता है।
हम रोज सोनी जी से सितार सीख ले जाने लगे, दिन रात सिर्फ एक ही धुन सवार थी सितार बजाना
सोनी जी कितने अच्छे थे यह मैं नहीं कह सकता , उन्होंने अपने हाथ का बजाने वाला सितार भी मुझे दे दिया ,
कहा यह सितार तुम्हारा है ...
लगभग एक या डेढ़ वर्ष तक वह बड़ी बेचैनी से सिखाने लगे
शायद उन्हें अनुभव हो गया था , वह ज्यादा दिन तक नहीं रहेंगे .. एक दिन .... सोनी जी हम सब को
छोड़कर परमधाम चले गए ... बहुत दुख हुआ, उनके परिजनों के साथ उनकी अस्थियों लेकर प्रयागराज भी
हम साथ में गए , हमारे बाबूजी भी साथ में थे उन को अंतिम विदाई देते समय बाबूजी ने दो लाइने लिखी
आप को राम-राम मोरी
भाग्य लिखो पाओ सब हमने दइए किए खोरी . आगे की आशा है मोखां अब दौआ तोरी
आपको राम राम मोरी
सोनी जी के जाने के बाद संगीत की यात्रा रुक गई थी , लेकिन बाबू जी ने अपने मित्रों से पूछ कर
शासकीय संगीत महाविद्यालय मैहर लिवा कर गए , मां शारदा के परम उपासक बाबा अलाउद्दीन जोकि
संगीत की दुनिया के बड़े भारी उस्ताद थे ,उनके शिष्य डेविड साहब , पंडित रविशंकर जी , और
अली अकबर जी , यह तीन विशेष शिष्य थे , जिनमें से डेविड साहब जोकि मूलनिवासी श्रीलंका के थे
जिनका नाम रटने में हमें काफी समय लगा था
sir siyam bala pidage dan podi appu svami
उस समय संगीत महाविद्यालय के प्रिंसिपल थे ,
बाबूजी उनसे व्यक्तिगत रूप से उनके घर पर जाकर मिले ,और मेरी लगन ,और व्यथा के बारे में उन्हें बताया
श्री डेविड साहब सितार के मर्मज्ञ थे , कॉलेज में एडमिशन दिलाया ,और उन्हीं के मकान में एक किराए का
कमरा लेकर रहने लगे और सितार सीखने लगे।
1 वर्ष डेविड साहब से सितार सीखा, इसके बाद वह रिटायर हो गए तो
पिताजी ने बहुत ज्यादा खर्च करके उनको अपने गांव घाट कोटरा बुलाया , और लगभग 3 महीने तक
उन्होंने हमें घर पर ही सितार सिखाया। इसके बाद वह अपने मैहर चले गए और हमसे कहा कि अब तुम
ग्वालियर में जाकर सीखो।
, बाबूजी हम को लेकर शासकीय माधव संगीत महाविद्यालय ग्वालियर आए
और 2 वर्ष तक ग्वालियर में श्री पन्नालाल कोष्ठी ,
एवं कॉलेज के रिटायर प्रिंसिपल श्री गडकर साहब से सितार की शिक्षा ली।
इस तरह से हमारे जीवन में संगीत का शुभारंभ हुआ लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों को महसूस करते हुए हमने
गृहस्थाश्रम में प्रवेश किया।
जय श्री राधे जय श्री कृष्ण।
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